लेखक - नारायण प्रसाद
जब
कोय अतिथि के स्वागत कइल जा हइ, त उनका मेजबान घर में प्रवेश करे खातिर
"आना" क्रिया के दू तुरी प्रयोग करके "आथिन, आथिन !" (हिन्दी में 'आइए, आइए !', तमिल में 'वांगऽ, वांगऽ !') जइसन द्वित्व शब्द के व्यवहार करऽ हइ ।
भारत के कउनो भाषा-भाषी अतिथि के स्वागत करते बखत "आथिन" जइसन एक्के
शब्द के व्यवहार नञ् करऽ हइ ! स्वागत खातिर एक्के शब्द के प्रयोग कइल गेला पर हो
सकऽ हइ कि अतिथि बुरा मान जाय कि हम्मर वास्तव में स्वागत नञ् कइल गेल
(शंकरनारायणन् 2002)
!
आंशिक
या पूर्ण द्वित्व के प्रयोग पर प्राचीनतम उल्लेख पाणिनि के सुप्रसिद्ध
संस्कृत व्याकरण "अष्टाध्यायी" में पावल जा हइ (एकाचो द्वे प्रथमस्य ॥६.१.१॥; सर्वस्य द्वे ॥८.१.१॥) । वस्तुतः द्वित्व
(Reduplication)
एगो अखिल भारतीय तथ्य (pan-Indian
phenomenon) हइ जेकर दक्षिण एशियाई भाषिक क्षेत्र (linguistic area) में सुसंगति (consistency) प्रदान करे वाला दर्जन भर वैशिष्ट्य में
से एक ठो के रूप में उल्लेख कइल जा हइ (आन्नी मौँतो 2009) । द्वित्व
के बारे में बहुत सारा अध्ययन कैल गेले ह आउ ई विषय पर लेख-पर-लेख, थीसिस-पर-थीसिस आउ किताब-पर-किताब लिक्खल
जा रहले ह (उदाहरणार्थ - बूलोगा रम्बै 2009, परिमलगंठम्
2008, बेर्नहार्ड हुर्श 2005, शंकरनारायणन् 2002, अन्विता
ऐब्बी
1980, 1992) । जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के
भाषाविज्ञान के प्रोफेसर
अन्विता ऐब्बी दक्षिण एशिया के तेतीस
आधुनिक भाषा के साथ-साथ कइएक प्राचीन भाषा के बारे में ई विषय पर अप्पन शोध-ग्रन्थ
लिखलथिन ह (अन्विता ऐब्बी 1992) । राजेन्द्र सिंह (2005) पहले तुरी हिन्दी/ उर्दू में द्वित्व प्रक्रिया लगी स्पष्ट रूप
से रूपात्मक (morphological)
नियम के लगभग सर्वांगपूर्ण सेट तैयार
करके रूपविधान (morphology)
पर एगो विस्तृत सैद्धान्तिक विश्लेषण
प्रस्तुत कइलथिन ह (आन्नी मौँतो 2009)।
कउनो
प्रकार के शब्द के द्वित्व कइल जा सकऽ हइ, खाली
विभक्ति चिह्न (में,
से आदि) आउ समुच्चय बोधक शब्द के छोड़के
(केलॉग 1938:492-497)
। मगही
भाषो में साधारणतः हिन्दी जइसने द्वित्व के प्रयोग कइल जा हइ, मगर मगही के प्रकृति के अनुसार शब्द के रूप में थोड़ा-बहुत
फेर-फार करे के जरूरत पड़ऽ हइ । जैसे - हिन्दी में प्रयुक्त "बैठे-बैठे"
के जगह पर मगही में "बइठल-बइठल" । ओहे
से हिन्दी सम्बन्धी लेख में प्रस्तुत उदाहरण के संक्षेप में उल्लेख कइला के बाद मगही के एगो विशिष्ट प्रकार के द्वित्व के चर्चा कइल जइतइ जेकर प्रयोग हिन्दी में नञ् पावल जा हइ ।
राजेन्द्र
सिंह (2005)
के लेख में अनुच्छेद के अनुसार चर्चा कइल उदाहरण
-
(2) आंशिक
द्वित्व
नरेन्द्र-वरेन्द्र, भगवान-वगवान
(3) सम्पूर्ण
द्वित्व
(a) नगर-नगर, लाल-लाल, चलते-चलते, रो-रो
कर, तीन-तीन
(b)
बड़ी-बड़ी, हरी-हरी
(c) क्या-क्या
(d) घूमते-घूमते, पीते-पीते
(e) डूबते-डूबते
(f) जल्दी-जल्दी, नीचे-नीचे ... ऊपर-ऊपर
(4) द्वित्व
के सीमा के विस्तार
(a) तन-बदन, धन-दौलत, विवाह-शादी
(b) कम-ज्यादा, ऊँचा-नीचा, अमीर-गरीब
(c) फल-फूल, मेज-कुर्सी, चाय-पानी
आन्नी
मौँतो (2009)
के लेख में अनुच्छेदानुसार चर्चा कइल द्वित्व
के उदाहरण –
1. सम्पूर्ण
द्वित्व
1.1. संज्ञा
एवं संख्या
1.1.1. प्रातिनिधिक
व्यष्टिवाचक अर्थ
एक-एक
1.1.2. परिगणनात्मक
प्रभाव:
एकवचन में संज्ञा या सर्वनाम
(a) कहाँ-कहाँ, क्या-क्या
(b) जो-जो
(c) रोम-रोम
(d) बच्चा-बच्चा
1.1.3. बहुवचन
संज्ञा
महिलाएँ-महिलाएँ
1.2. क्रिया
के द्वित्व:
प्रक्रिया के पुनरावृत्ति या
निरन्तरता
खाते-खाते, सोये-सोये, टहल-टहल कर, हँस-हँस
कर, चलते-चलते, जाते-जाते, धुल-धुल
कर (फट जाना),
सुनते-सुनते (सुन-सुन कर), बैठे-बैठे, रोते-रोते, आ-आ
कर, होते-होते, करते-करते, गिरते-गिरते
1.3. विशेषण
के द्वित्व
1.3.1. तीव्रता
आउ उच्च कोटि
काले-काले
बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, ठंढा-ठंढा कोक, गरम-गरम
चाय, हरी-हरी मुलायम घास, नीला-नीला आकाश
1.3.2. निम्न
कोटि आउ क्षीणता
नीला-नीला पानी, नीले-नीले
पहाड़, पीले-पीले कागज, पीला-पीला रंग, पीला-पीला
छिलका
2. अनुकरण
संरचना
2.1-5. आदि
व्यंजन के स्थान में 'व-',
'ओ-' के
साथ द्वित्व
शादी-वादी, चाय-वाय, पढ़ना-वढ़ना, आत्मा-वात्मा, क्रान्ति-व्रान्ति, प्रेम-व्रेम, पकौड़ा-वकौड़ा, लड़की-वड़की, पेन-वेन, टाइम-वाइम, नोटिस-वोटिस, किस्मत-विस्मत, तलाक-वलाक, घोड़ा-ओड़ा; खाना-वाना, सजा-वजा
कर, ताश-वाश, लेकिन-वेकिन, नया-वया
प्लेट, लेखक-वेखक, पंडित-वंडित, रिसर्च-विसर्च, ठंढ-वंढ, पार्टी-वार्टी, सैंडविच-वैंडविच, मोड़-वोड़ लेना, पढ़-वढ़ लेना
2.6. अन्य
अनुकरण या अनुप्रास के साथ रचना
देख-दाख
कर, पूछ-पाछ कर, कभी-कभार, आस-पास, आर-पार, भीड़-भाड़, बेच-बाच
कर,
अब मगही के एक ठो विशेष द्वित्व के
चर्चा कइल जा रहले ह । ई द्वित्व के प्रकृति समझे लगी निम्नलिखित उदाहरण पर ध्यान
देल जाय -
कर-किताब, चर-चपरासी, जर-जमीन, दर-दोकान, बर-बेमारी, मर-मैदान, सर-समान ।
उपर्युक्त उदाहरण सब से ई स्पष्ट हइ कि
द्वित्व के प्रथम अंश में दू अक्षर होवऽ हइ जेकरा में
(1) पहिला अक्षर मूल शब्द के आदि अक्षर
रहऽ हइ जेकरा मूल वर्ण के रूप में अर्थात् अकारान्त लेल जा हइ ।
(2) दोसरा अक्षर हमेशा "र"
होवऽ हइ ।
"किताब" के पहिला अक्षर "कि", अकारान्त कइला पर "क" । फिर एकरा में दोसरा अक्षर
"र" जोड़े पर द्वित्व बनलइ - "कर-किताब" ।
"दोकान" के पहिला अक्षर "दो", अकारान्त कइला पर "द" । फिर एकरा में दोसरा अक्षर "र" जोड़े पर
द्वित्व बनलइ - "दर-दोकान" ।
एहे तरह से बाकी द्वित्व के रचना समझल जाय ।
एक चर्चा-समूह (http://groups.google.com/group/shabdcharcha)
पर चर्चा के दौरान पता चललइ कि अइसन
द्वित्व मगही के अतिरिक्त मैथिली आउ भोजपुरी में भी पावल जा हइ । एक मैथिलीभाषी ई
बतइलथिन कि फणीश्वरनाथ रेणु जी "मैला आंचल" में कोशी किनारे बोले जाय
वला मैथिली,
जे कि मूल मैथिली से थोड़े भिन्न हकइ, में ई तरह के शब्द-युग्म के आम बोलचाल में प्रचलन पर पूरा एक
पैराग्राफ लिखलथिन ह आउ दर्जनो उदाहरण भी गिनइलथिन ह । इंटरनेट
पर उपलब्ध सामग्री के सहायता से ई उद्धरण नीचे देल जा रहले ह –
यह है कचहरी । यहीं कर-कचहरी में लोग
मर-मुकदमा करने के लिए आते हैं । इसी तरह उपसर्ग लगाकर सब बोलते हैं - कर-कचहरी, खर-खजाना, गर-गरामित, घर-घरहट, चर-चुमौना, जर-जमीन, पर-पंचायत, फर-फौजदारी, बर-बरात, मर-मुकदमा
या मर-महाजन ! (रेणु रचनावली 2:97.13-16)
मैथिली लेखक तारानन्द वियोगी के कथा
"पन्द्रह अगस्त सन्तानबे" से मैथिली में अइसन द्वित्व के एक उदाहरण देखल
जाय –
“हीरा महतो कठघरा खोललनि । सर-समान बहार कएलनि । पानि
भरि क' अनलनि, बरतन-बासन धोलथि-पोछलथि आ स्टोव जरा क' पानि चढ़ा देलखिन ।”
अवधी भाषो में अइसन द्वित्व पावल जा हइ
। उदाहरणस्वरूप -
फुलमती कै मरद रेलगाड़ी कइके जात रहे ।
छुट्टी मंजूर होइगै रही । आज सारा सर समान खरीद कै बक्सा तैयार करि कै धइ
आइ रहिन । (अवधी ग्रन्थावली 5:115.10)
तमाम यात्रियन के साथे महादेवौ कै
इंतकाल होइगै । महादेव कै साथी बिहारी ई बज्रपात कै खबरि अउर ओनकै सर समान
लइके जब आय तौ फूलमती की दुनियाँ म अन्हियार होइगै । (अवधी ग्रन्थावली 5:115.16)
बिहारी क पता फूलमती के लगे रहा ।
बिहारी बगल के गाँव के होय, जौन महादेव के मरै क खबरि और सर समान
लैके आय रहिन । (अवधी ग्रन्थावली 5:118.35)
बिलकुल अइसने तो नञ् बकि एकरा से
मिलता-जुलता द्वित्व पंजाबियो में हइ । एक ठो पंजाबीभाषी बतइलथिन कि लगभग हर
शब्द के अइसन द्वित्व शब्द बनावल जा सकऽ हइ ।
फर्क ई हइ कि मगही के "र" पंजाबी में "ड़" बन जा हइ आउ
लिंग के हिसाब से "ड़ा" या "ड़ी" बनऽ हइ । जइसे - कड़ी-किताब, कड़ी-कचहरी, चड़ा-चपड़ासी, जड़ी-जमीन, दड़ी-दूकान, बड़ी-बीमारी, मड़ा-मैदान ।
वाक्य
में प्रयोग आउ सम्पूर्ण उद्धरण सहित मगही कोश तइयार करते बखत हमरा कइएक मगही रचना
में अइसन द्वित्व पर दृष्टि गेलइ । ई सब के कोश में पृथक् शब्द के रूप में
प्रविष्टि कइल गेले ह । मगही साहित्य से संकलित नीचे द्वित्व के कुछ उदाहरण
सन्दर्भ सहित देल जा रहले ह । प्रयुक्त संकेत भी अन्त में दे देवल
गेले ह ।
अर-अपराध (मपध॰01:2:7:2.27)
अर-असीरवाद (मपध॰01:2:4:1.10)
कर-कचहरी (अमा॰2:6:2.13)
कर-कानून (नजिसु॰16.5)
कर-किताब (नजिसु॰16.5; मपध॰01:1:5:1.23; धमके॰1:74.4, 77.16, 95.5, 96.17)
कर-कुटुम (अमा॰66:18:1.17; बंगमा॰12:2:59.13)
कर-कुदार
(बंगमा॰12:2:54.17)
कर-केबाड़ी (मपध॰02:4:24:3.32)
खर-खनदान (अमा॰172:15:1.12, 2.3)
खर-खरिहान (मपध॰02:5-6:4:1.18)
गर-गलबात
(मज॰107.24; मपध॰02:8-9:31:1.24; कसोमि॰41.22)
गर-गिरहस्थी
(जोमुसिं॰iv.8)
गर-गृहस्थी
(माकेम॰50.5-6)
गर-गोरखिया (मपध॰02:7:37:3.3)
गर-गोसाला (बंगमा॰12:2:42.31)
घर-घरनी
(माकेसिं॰83.12)
चर-चपरासी
(जोमुसिं॰19.18)
जर-जनावर
(धमके॰1:54.5)
जर-जमीन (गो॰4:21.30; अमा॰14:12:1.19; 30:14:2.14; माकेसिं॰58.26; जोमुसिं॰9.26; 24.6; धमके॰3:46.2, 103.13,
117.5)
जर-जमीन्दारी (मकस॰62:5)
जर-जलपान (अमा॰173:6:1.28; मपध॰02:7:33:1.28)
जर-जिद्द (बामदा॰8.30)
जर-जेवार (माकेसिं॰37.14; 82.12; मपध॰02:7:33:2.21; 11:13:46:2.38; बंगमा॰11:1:36.25)
जर-जोगाड़ (मपध॰11:17:48:1.28)
झर-झमेला (मपध॰02:8-9:19:2.25)
झर-झरना (धमके॰3:80.4, 83.4)
झर-झलासी (झारमा॰12:1:21.13)
टर-टूसन (मपध॰11:14:25:1.8)
टर-ट्युशन (बंगमा॰12:2:52.21)
तर-तइयारी (नसध॰26:115.7; नजिसु॰12.24; फुसु॰15.3-4)
दर-दबाय (मपध॰11:15:60:1.4)
दर-दरोगा
(फुसु॰15.2)
दर-दलान (मपध॰02:5-6:4:1.18; बंगमा॰11:1:32.25)
दर-दलाल (बंगमा॰11:1:36.25)
दर-दिहा
(मज॰19.16)
दर-दुनिया
(अमा॰173:19:1.26)
दर-दुस्मनी
(फुसु॰15.15)
दर-देहात (मपध॰02:3:12:1.28)
दर-दोकान (मपध॰02:5-6:4:1.18; झारमा॰12:1:49.19)
नर-नौकरी (धमके॰3:14.14)
पर-परसाद (मपध॰02:8-9:40:1.27)
पर-परसानी (मपध॰02:8-9:22:3.9)
पर-परिवार (मपध॰01:1:13:3.27; 02:5-6:43:3.2)
पर-परेम
(फुसु॰25.12; 26.21)
पर-पहाड़ (धमके॰1:68.1-2)
पर-पहुना (गो॰3:17.30; माकेसिं॰49.23-24)
पर-पखाना (मविक॰56.17, 88.4; बंगमा॰11:1:38.32)
पर-पाखाना
(माकेसिं॰20.13; 40.3)
पर-पैखाना (अल॰29:90.24; माकेसिं॰69.28; कसोमि॰28.9; बंगमा॰11:1:39.20; झारमा॰12:1:50.19)
बर-बटइया
(अमा॰5:16:2.1)
बर-बद्धी (मपध॰02:8-9:40:1.27)
बर-बाजार (माकेसिं॰53.11; मपध॰11:15:23:3.26)
बर-बिछौना (मसक॰64:5)
बर-बेमारी (गो॰1:4.12; नसध॰27:121.9; मपध॰02:10-11:47:1.14; बंगमा॰11:1:36.32)
बर-बेहवार
(अमा॰17:9:2.27)
मर-मकान (मपध॰02:7:37:3.5)
मर-मजूरी (मसक॰138:20; फुसु॰15.7)
मर-मरदाना (मपध॰12:19:44:2.16)
मर-मसाला (मसक॰49:12; माकेसिं॰33.16; मविक॰69.11; कसोमि॰78.16)
मर-मिठाई (सँशउ॰66.4)
मर-मैदान (मसक॰101:15)
मर-मोकदमा (गो॰4:21.5; कब॰47:24; रम॰5:46.22; अल॰43:140.13; बंगमा॰11:1:34.37)
सर-सनई (गो॰1:9.28)
सर-सफाई (अमा॰66:18:1.18)
सर-सबूत
(फुसु॰15.21)
सर-सब्जी
(जोमुसिं॰22.4)
सर-समाचार (अमा॰166:15:1.9; कसोमि॰69.15; झारमा॰12:1:28.5)
सर-समाज (मपध॰02:5-6:43:2.23)
सर-समान (गो॰10:43.25; नसध॰30:132.11; अमा॰12:14:2.2; 66:18:1.21; 165:11:2.28; 166:8:1.15; मज॰37.7-8; मपध॰02:4:26:1.28; धमके॰1:91.23; 3:103.10)
सर-सरजाम (मपध॰11:16:38:1.2, 5, 6, 8)
सर-सरबत (मपध॰02:7:33:1.29)
सर-सादी (धमके॰1:51.16-17)
सर-सामान (अआवि॰51:11)
सर-सिकायत (मपध॰02:3:4:1.24)
हर-हरमेसा (धमके॰3:xviii.18)
हर-हुमाद (मपध॰02:7:34:3.18)
हर-हेरान (मपध॰11:15:26:3.14)
उपर्युक्त
उद्धरण से स्पष्ट होवऽ हइ कि द्वित्व "सर-समान" के प्रयोग सबसे जादे
मिल्लऽ हइ । एक्कर मगही साहित्य से वाक्य प्रयोग के कुछ उदाहरण नीचे देल जा रहले ह
-
(1) आउ
लपक के दानापुर ओली बस पर चढ़ गेल । सर-समान तो कुछ नहिएँ हल । (गो॰10:43.25)
(2) आज
हम कसबा से जाके सर-समान ले अबवऽ आउ कल से अपन फूटल दोकान के भीतरे ऊ खेल
सुरुम कर देबवऽ ।
(नसध॰30:132.11)
(3) ऊ
बराती के खातिर में तनिक्को कमी न कयलन हल । अप्पन औकात से जादे सरो-समान
देलन हल ।
(अमा॰12:14:2.2)
(4) सर-सफाई के सभे जिम्मेवारी ऊ अप्पन जोरू पर देवल चाहऽ हथ, काहे कि उनका तो बहरिये के काम-धंधा से छुट्टी न रहऽ हे । कहीं
से थकल-माँदल अएतन त घर-दुआर थोड़े साफ करे लगतन, सर-समान थोड़े सरियावे लगतन, उनका तो अराम करे के चाही । (अमा॰66:18:1.21)
(5) तरेगनी
- लऽ ! तनी झपटल जा कउनो सोनार भिजुन आउ गहना बेच के रुपइया ले आवऽ । तब तक हम आउ
सब सर-समान जुटा के ओझाई के काम सुरू करावइत ही । (अमा॰165:11:2.28)
(6) मिसिर
जी के खाँसी बढ़ल हल,
से बोला पेठैलन । कहलन - 'गोपाल, माला के कुछ सर-समान खरीदे के हई, तनी साथे जइतहो हल ।' (अमा॰166:8:1.15)
(7) 6 जून
के अन्हरुखे सर-समान लेले दुन्हू जीव बस पकड़ के रजधानी अयलूँ
। (मज॰37.7-8)
(8) देखते-देखते
सब कुछ बदल गेल । डकैत अपन घायल साथी के लेके भाग छुटल, सब
सर-समान जहाँ के तहाँ फेंक के । (मपध॰02:4:26:1.28)
(9) रात
भर रहे के बाद दोसर दिन नहा धोवा के राम आउ लक्ष्मण दूनो भाई सर-समान खरीदे
बजार चल गेलन आउ एने माई जानकी उनकर इंतजारी फल्गु के किनारे कर रहलन हल । (धमके॰1:91.23)
(10) इ
गिरि परिवार जे आसपास में राज परिवार नियन जानल जा हलन, में
एक से बढ़कर एक वंशज होलन, जेकरा में शतानन्द गिरि, लाल गिरि, हरिहर गिरि, रघुवर
गिरि, जयराम गिरि आदि के बनवावल सर-समान लोग आझो इयाद करऽ
हथिन । (धमके॰3:103.10)
“घर-घरनी” के उदाहरण –
कउन
मलिकार के का सवाद हे,
उनकर बनिहार के का मन के मुराद हे -
अतने न,
खेते में बइठल मलिकार के घर-घरनी
के बात बेयोहार,
सोभाव, सोवाद, दिल आ मन के बात समझ जा हलन । (माकेसिं॰83.12)
हियाँ
ई तर्क कइल जा सकऽ हइ कि 'घर-घरनी' द्वित्व
के नञ्,
बल्कि द्वन्द्व समास के उदाहरण हइ, अर्थात् 'घर आउ घरनी' अर्थ
में प्रयुक्त । अगर ई अर्थ में प्रयोग कइल गेले ह, त
वस्तुतः 'घर-घरनी' द्वित्व के उदाहरण नञ् होतइ ।
हिन्दी
के 'ही'
आउ 'भी' के अर्थ में मगही में प्रयुक्त क्रमशः '-ए'
आउ '-ओ' प्रत्यय के प्रयोग उपर्युक्त द्वित्व के पहिला अंश में कइल जा
हइ । जइसे –
रघुवर महतो के तो दस-पाँच जरो-जमीन हे । (गो॰4:21.30)
ऊ
बराती के खातिर में तनिक्को कमी न कयलन हल । अप्पन औकात से जादे सरो-समान
देलन हल ।
(अमा॰12:14:2.2)
एकबैग
अप्पन पीठ खजुआवे लगल । कबो पेट खजुआवे त कबौ पंजरा । पीठ के नोचनी से तऽ ऊ
हरे-हरान हो गेल ।
(मपध॰11:15:26:3.14)
ई
विषय पर विस्तृत विवेचन लगी देखल जाय प्रकृत लेखक के आलेख - "मगही में हिन्दी
के 'ही'
आउ 'भी' के प्रयोग पर विवेचन" ।
सन्दर्भ
हेतु प्रयुक्त संख्या के विवरण:
'अलका
मागधी' के सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या
दर्शावऽ हइ ।
'मगही
पत्रिका'
के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन
वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर
संख्या संचित
(पूर्णांक) अंक
संख्या;
तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे
एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
'बंग
मागधी' के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी
वर्ष के अन्तिम दू अंक);
दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
'झारखंड
मागधी' के सन्दर्भ में --- 'बंग मागधी' जइसन
।
पुस्तक
के सन्दर्भ में खंड
(volume), अध्याय
(chapter)
या अनुच्छेद (section)
रहला पर पहिले एक्कर संख्या, फेर पृष्ठ संख्या आउ बिन्दु
के बाद में पंक्ति संख्या ।
प्रयुक्त
संकेत:
संकेत पूर्ण रूप लेखक / सम्पादक
----- -------- ------------------
अआवि॰
अमृत आउ विष पं॰
हरिदास ज्वाल
अमा॰
अलका मागधी डॉ॰ अभिमन्यु मौर्य
अल॰
अलगंठवा बाबूलाल मधुकर
कब॰
कथा-बतीसी घमण्डी राम उर्फ रामदास आर्य
कसोमि॰ कनकन सोरा मिथिलेश
गो॰
गोदना डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री ( डॉ॰ रामनन्दन)
जोमुसिं॰
जोरन मुद्रिका सिंह
झारमा॰ झारखंड
मागधी धनंजय
श्रोत्रिय
धमके॰
धरोहर मगध के डॉ॰ राकेश कुमार सिन्हा 'रवि'
नसध॰
नरक सरग धरती डॉ॰
राम प्रसाद सिंह
फूसु॰
फूलवा सुमंत
बंगमा॰ बंग
मागधी धनंजय श्रोत्रिय
बामदा॰ बाबा
मटोखर दास परमेश्वरी
मज॰
मगही जतरा डॉ॰ भरत सिंह एवं डॉ॰ चंचला कुमारी
मपध॰
मगही
पत्रिका धनंजय श्रोत्रिय
मविक॰ मगही विरंज मनोज कुमार 'कमल'
मसक॰
मगही समसामयिक कहानी डॉ॰ अभिमन्यु प्रसाद मौर्य
माकेम॰
माटी के मरम घमण्डी राम उर्फ रामदास आर्य
माकेसिं॰
माटी के सिंगार घमण्डी
राम उर्फ रामदास आर्य
रम॰
रमरतिया बाबूलाल मधुकर
सँशउ॰ सँवली शशिभूषण
उपाध्याय 'मधुकर'
सन्दर्भः
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नारायण
प्रसाद (2011)
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प्रा॰लि॰, नई
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200 रुपये । कुल पाँच खंड (सेट) के मूल्यः 1000 रुपये ।
जगदीश पीयूष (सं॰) (2008): “अवधी ग्रन्थावली”, भाग-5, वाणी
प्रकाशन,
नई दिल्ली । कुल पाँच खंड (सेट) के
मूल्यः 5000
रुपये ।
तारानन्द वियोगी (2010): "पन्द्रह अगस्त सन्तानबे" (मैथिली
कथा) ।
(http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_6142.html)
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