रूसी
उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-1
1.
बेला - अध्याय-11
किला
के गेट बिजुन लोग के भीड़ हमन्हीं के इंतजार कर रहले हल; सवधानी से हमन्हीं घायल लड़की
के पिचोरिन के क्वाटर पर पहुँचइलिअइ आउ डाक्टर के बोलवा भेजइलिअइ । ऊ हलाँकि पीयल हलइ,
लेकिन अइलइ - घाव के जाँच कइलकइ आउ घोषित कइलकइ, कि ऊ लड़की एक दिन से जादे जिंदा नयँ
रहतइ; लेकिन ओकरा गलतफहमी हलइ ...
"त
ऊ चंगा हो गेलइ ?" हम स्टाफ-कप्तान के हाथ पकड़के आउ अनजाने में खुश होके उनका
पुछलिअइ ।
"नयँ",
ऊ उत्तर देलका, "लेकिन डाक्टर के गलतफहमी अइसे होलइ, कि ऊ आउ दू दिन तक जिंदा
रहलइ ।"
"लेकिन
हमरा बताथिन, कि कइसे ओकरा काज़बिच अपहरण कइलकइ ?"
"बात
ई हलइ - पिचोरिन के मना कइलो पर, ऊ किला से बहरसी निकसके नद्दी दने गेलइ । जानऽ हथिन,
बहुत झरक हलइ; ऊ पत्थल पर बैठ गेलइ आउ अपन गोड़ पानी में डाल देलकइ । त अइकी काज़बिच
चोरी-चुपके पहुँचलइ - ओकरा झट से धर लेलकइ, मुँह दबाके बन कर देलकइ आउ झाड़ी में घसीटते
ले गेलइ, आउ हुआँ उछलके घोड़ा पर सवार हो गेलइ, आउ सरपट भाग गेलइ ! एहे दौरान ओकरा चिल्लाय
के मौका मिल गेलइ, संतरी सब हो-हल्ला मचइते गेलइ, फायर कइलकइ, लेकिन निशाना चूक गेलइ,
आउ तखनिएँ हमन्हीं हुआँ पहुँचते गेलिअइ ।"
"लेकिन
काहे लगी काज़बिच ओकरा अपहरण करे लगी चहलकइ ?"
"बात
ई हइ, कि ई चेर्केस लोग मशहूर चोर हइ - कुछ असुरक्षित पड़ल देखाय देलकइ नयँ, कि बिन
हाथ मारले ओकन्हीं रहतइ नयँ; दोसर आउ कुछ काम के नयँ, तइयो चोराऽ लेतइ ... ई मामले
में ओकन्हीं के क्षमा कर देवे के निवेदन करऽ हिअइ ! एकरा अलावे ऊ तो ओकरा लम्मा समय
से पसीन हलइ ।"
"आउ
बेला मर गेलइ ?"
"मर
गेलइ; लेकिन लम्मा समय तक कष्ट झेललकइ, आउ हमन्हिंयों ओकरा साथ अच्छा से कष्ट भोगलिअइ
। करीब दस बजे शाम के ऊ होश में अइलइ; हमन्हीं बिछौना भिर बैठल हलिअइ; जइसीं ऊ आँख
खोललकइ, पिचोरिन के नाम पुकारे लगलइ । ‘हम हिएँ हकिअउ, तोरा भिर, हम्मर जानेच्का (मतलब,
हमन्हीं के भाषा में, जान)’, ओकर हाथ पकड़के ऊ जवाब देलकइ । ‘हम तो मर जइबो !’ ऊ बोललइ
। हमन्हीं ओकरा सांत्वना देवे लगलिअइ, कहलिअइ, कि डाक्टर ओकरा पक्का चंगा करे के वचन
देलके ह; ऊ सिर हिलइलकइ आउ देवाल दने मुँह फेर लेलकइ - ओकरा मरे के इच्छा नयँ हलइ
! ...
रात
में ऊ बड़बड़ाय लगलइ; ओकर सिर तप रहले हल, कभी-कभी ओकर पूरा देह बोखार से कँपकँपाय लगऽ
हलइ; ऊ अपन बाप, भाय के बारे असंबद्ध बात बोलऽ हलइ - ओकरा अपन पहाड़, घर जाय के मन करऽ
हलइ ...
फेर
ऊ ओइसीं पिचोरिन के बारे बोले लगलइ, ओकरा कइएक प्यार भरल नाम से पुकारे लगलइ, चाहे
ओकरा ई बात लगी भर्त्स्ना करे लगलइ, कि ऊ अभी अपन जानेच्का के प्यार नयँ करऽ हइ
...
पिचोरिन
ओकर बात चुपचाप सुनते रहलइ, अपन सिर निच्चे हाथ पर टिकइले; लेकिन ई पूरे समय हम ओकर
पिपनी में एक्को ठोप लोर नयँ देखलिअइ - वास्तव में ऊ रो नयँ सकलइ, कि ऊ खुद के नियंत्रण
में रखले रहलइ - मालूम नयँ; जाहाँ तक हम्मर बात हइ, त हमरा एकरा से जादे कुच्छो करुणाजनक
देखे लगी नयँ मिल्लल ।
सुबहे
तक के सरसाम खतम हो गेलइ; एक घंटा तक ऊ बिन हिलले-डुलले पड़ल रहलइ, पीयर, आउ एतना कमजोर,
कि मोसकिल से पता चलऽ हलइ, कि ऊ साँस लेब करऽ हइ; फेर ओकर हालत बेहतर हो गेलइ, आउ ऊ
बोले लगलइ, लेकिन अपने सोच सकऽ हथिन कि कउची बारे ? ... अइसन विचार तो मस्तिष्क में
खाली मरणासन्न व्यक्ति के आवऽ हइ ! ... ओकरा ई बात के दुख हलइ, कि ऊ क्रिश्चियन नयँ
हइ, कि दोसरा संसार (स्वर्ग) में ओकर आत्मा ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच के आत्मा से मिल
नयँ पइतइ, कि कोय दोसर स्त्री उनकर सहचरी होतइ । हमर मस्तिष्क में ई विचार अइलइ, कि
ओकरा मौत के पहिले ईसाई बना देल जाय; हम ओकरा सामने ई प्रस्ताव रखलिअइ; ऊ हमरा दने
अनिश्चय के मुद्रा में तकलकइ आउ देर तक मुँह से कोय शब्द निकास नयँ सकलइ; आखिरकार जवाब
देलकइ, कि ऊ ओहे आस्था के साथ मरतइ, जेकरा में ऊ पैदा होले हल । अइसीं पूरा दिन गुजर
गेलइ । ई दिन ऊ केतना बदल गेलइ ! गाल पिचक गेलइ, आँख बड़गर हो गेलइ, होंठ जल रहले हल
। ऊ आंतरिक ताप अनुभव कर रहले हल, मानूँ ओकर छाती में लाल-तप्त लोहा पड़ल हलइ ।
दोसरा
रात अइलइ; हमन्हीं आँख के पलक नयँ झपकइलिअइ, ओकर बिछौना भिर से दूर नयँ गेलिअइ । ओकरा
भयंकर कष्ट हलइ, कराहऽ हलइ, आउ जइसीं दरद कम होवे लगलइ, ऊ ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच
के विश्वास देलावे लगलइ, कि ओकरा अभी बेहतर लगऽ हइ, ओकरा जाके सुत्ते लगी समझावे लगलइ,
ओकर हाथ चुमलकइ, आउ ओकर हाथ अपन हाथ से छोड़लकइ नयँ । भोर होवे के पहिले ऊ मौत के व्यथा
के अनुभव करे लगलइ, छटपटाय लगलइ, घाव के पट्टी के नोचके बिग देलकइ, आउ खून फेर से बहे
लगलइ । जब घाव पर फेर से पट्टी बान्हल गेलइ, त ऊ एक मिनट लगी शांत रहलइ आउ पिचोरिन
से निवेदन करे लगलइ, कि ऊ ओकरा चूम लेइ । ऊ बिछौना भिर टेहुना के बल बैठ गेलइ, ओकर
सिर तकिया पर से उठइलकइ आउ अपन होंठ ओकर ठंढा हो रहल होंठ से दबइलकइ; बेला अपन काँपते
हाथ से कसके ओकर गरदन के लपेट लेलकइ, मानूँ ई चुंबन से ऊ अपन आत्मा के ओकरा समर्पित
करे लगी चाह रहले हल ... नयँ, ऊ निम्मन कइलकइ, कि मर गेलइ - काहेकि ओकर की होते हल,
अगर ओकरा ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच छोड़ देते हल ? आउ अइसन तो होवे करते हल, देर नयँ
तो सबेर ... अगला आधा दिन तक ऊ शांत, चुप आउ आज्ञाकारी रहलइ, चाहे केतनो ओकरा डाक्टर
पुलटिस (poultice - सूजन
कम करे खातिर भूसा, आटा, जड़ी-बूटी आदि के कोमल गीलगर सामग्री के साथ कपड़ा से बान्हल
पट्टी) आउ मिश्रित औषधि से यातना देलकइ । "किरपा करथिन", वस्तुतः अपनहीं
तो कहलथिन हल, कि ऊ पक्का मर जइतइ, फेर काहे लगी ई सारा अपने के उपचार ?" -
"तइयो बेहतर हइ, माक्सीम माक्सीमिच", ऊ उत्तर देलकइ, "कि हमर अंतःकरण
शांत रहइ ।" निम्मन अंतःकरण !
दुपहर
के बाद ओकरा तरास सतावे लगलइ । हमन्हीं खिड़की खोल देलिअइ - लेकिन कमरा में प्रांगण
के अपेक्षा जादे गरमी हलइ; बिछौना भिर बरफ रख देल गेलइ - लेकिन कोय फयदा नयँ होलइ ।
हम जानऽ हलिअइ, कि ई असहनीय तरास - मौत के नगीच होवे के लक्षण हइ, आउ ई बात पिचोरिन
के बतइलिअइ । "पानी, पानी ! ..." बिछौना पर से उठके भर्राल स्वर में ऊ बोललइ
।
ओकर
चेहरा उतर गेलइ, एगो गिलास लेलकइ, पानी भरलकइ आउ ओकरा देलकइ । हम हाथ से आँख झाँक लेलिअइ
आउ प्रार्थना करे लगलिअइ, आद नयँ कउन ... हाँ, बबुआ, हम बहुत कुछ देखलिअइ, कि कइसे
लोग अस्पताल में आउ युद्ध के मैदान में मरऽ हइ, लेकिन ई बिलकुल ऊ नयँ हलइ, बिलकुल ऊ
नयँ ! ... हम स्वीकार करऽ हिअइ, कि आउ हमरा एक बात सालऽ हइ - मौत के पहिले ऊ हमरा एक्को
तुरी आद नयँ कइलकइ; लेकिन लगऽ हइ, हम ओकरा एगो बाप नियन प्यार करऽ हलिअइ ... खैर, ओकरा
भगमान माफ करे ! ... आउ, अगर सच कहल जाय, तो हम केऽ हलिअइ, कि ऊ हमरा अपन मौत के पहिले
आद करते हल ? जइसीं ऊ पानी पिलकइ, कि ओकरा राहत मिललइ, आउ लगभग तीन मिनट बाद ऊ मर गेलइ
। दर्पण ओकर होंठ भिर रक्खल गेलइ - बिलकुल साफे रहलइ ! ... हम कमरा से पिचोरिन के बहरसी
लइलिअइ, आउ हमन्हीं किला के परकोटा पर गेलिअइ; हमन्हीं दुन्नु पास-पास देर तक आगू-पीछू
चहलकदमी करते रहलिअइ, बिन एक्को शब्द बोलले, आउ हाथ पीठ दने मोड़ले; ओकर चेहरा पर कोय
विशेष भाव नयँ हलइ, आउ हमरा दुख लगलइ - हम ओकर जगह पर होतिए हल, त शोक से मर जइतिए
हल । आखिरकार ऊ जमीन पर बैठ गेलइ, छाया में, आउ बालू पर छड़ी से कुछ तो रेखाचित्र बनावे
लगलइ । जानऽ हथिन, हम अधिक शिष्टाचार खातिर ओकरा सांत्वना देवे लगी चहलिअइ, बात करे
लगलिअइ; ऊ सिर उठइलकइ आउ हँस पड़लइ ... ई हँसी से हमर हड्डी से होके शीत कँपकँपी दौड़
गेलइ ... हम ताबूत (coffin, शवपेटी) के औडर करे लगी चल गेलिअइ । हम स्वीकार करऽ हिअइ,
कि आंशिक रूप से हम अपन विचार के पृथक् करे खातिर ई काम में लगलिअइ । हमरा पास रेशमी
कपड़ा के टुकड़ा हलइ, ताबूत के एकरा से झाँक देलिअइ आउ हम एकरा चानी के चेर्केस कलाबत्तू
(गोटा) से सजा देलिअइ, जेकरा ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच ओकरे लगी खरदलके हल ।
दोसर
दिन भोरगरे हमन्हीं ओकरा किला के पिछुआनी में दफना देलिअइ, नद्दी के पास, ओहे जगहा
भिर, जाहाँ ऊ अंतिम तुरी बैठल हलइ; ओकर छोटका कब्र के चारो दने अभी उज्जर अकेशिया
(acacia) आउ एल्डर के घना झाड़ी फैलल हइ । हमरा क्रॉस खड़ी करे के मन करऽ हलइ, लेकिन,
जानवे करऽ हथिन, ई ठीक नयँ लगलइ - आखिर ऊ तो क्रिश्चियन नयँ हलइ ...
"आउ
पिचोरिन के की होलइ ?" हम पुछलिअइ ।
"पिचोरिन
लम्मा समय तक बेमार रहलइ, दुब्बर हो गेलइ, बेचारा; लेकिन एकर बाद कभियो हमन्हीं बेला
के बारे बात नयँ करते गेलिअइ - हम देखलिअइ, कि ओकरा दुख होतइ, त काहे लगी ? करीब तीन
महिन्ना बाद ओकरा ये...य रेजिमेंट में नियुक्त
कइल गेलइ, आउ ऊ जॉर्जिया चल गेलइ । तब से हमन्हीं के दोबारा भेंट नयँ होलइ, लेकिन आद
पड़ऽ हइ, कोय तो हाल में हमरा बतइलकइ, कि ऊ रूस लौट गेलइ, लेकिन कोर (corps) के औडर
में नयँ हलइ । एकरा अलावे, हमन्हीं नियन हीं समाचारे लेट पहुँचऽ हइ ।"
हियाँ
परी ऊ एगो लम्मा भाषण ई विषय पर चालू कइलका, कि समाचार एक साल देर से जानना केतना अप्रिय
लगऽ हइ - शायद, ई लगी, कि दुखद स्मृति दब जाय । हम उनका न तो टोकलिअइ आउ न सुनलिअइ
।
एक
घंटा के बाद यात्रा जारी रक्खे के परिस्थिति उत्पन्न होलइ; बर्फानी तूफान शांत हो गेलइ,
आकाश साफ हो गेलइ, आउ हमन्हीं रवाना हो गेलिअइ । रस्ता में अनजाने बातचीत के हम फेर
से बेला आउ पिचोरिन दने मोड़ देलिअइ ।
"आउ
की अपने नयँ सुनलथिन, कि काज़बिच के साथ की होलइ ?" हम पुछलिअइ ।
"काज़बिच
के साथ ? वास्तव में, हमरा मालूम नयँ ... हम सुनलिअइ, कि दहिना तरफ शापसूग के बीच कोय
तो काज़बिच हइ, बहादुर, जे लाल बिश्मेत में, हमन्हीं के फायर कइला पर, घोड़ा पर दुलकी
चाल में जा हइ आउ अत्यंत आदरपूर्वक झुकके अभिवादन करऽ हइ, जब कभी गोली सनसनइते ओकरा
भिर से होके जा हइ; लेकिन ई ओहे अदमी हइ, एकरा में हमरा शक्का हइ ! ..."
कोबी
में माक्सीम माक्सीमिच आउ हम एक दोसरा से अलग हो गेते गेलिअइ; हम डाक घोड़ागाड़ी से रवाना
होलिअइ, जबकि ऊ भारी बोझ होवे के कारण हमरा पीछू नयँ आ पइला । हमन्हीं के आशा नयँ हलइ
कि फेर कभियो मिलते जइबइ, तइयो हमन्हीं मिललिअइ, आउ अगर चाहऽ हथिन, कि हम सुनइअइ -
त ई अपने आप में एगो कहानी हइ ... लेकिन अपने की ई बात स्वीकार करऽ हथिन, कि माक्सीम
माक्सीमिच एगो आदरणीय व्यक्ति हथिन ? ... अगर अपने ई बात स्वीकार करऽ हथिन, त हम अपन,
शायद, बहुत लमगर कहानी लगी पूरा-पूरा पुरस्कृत समझबइ ।
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