रूसी
उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-1
1.
बेला - अध्याय-4
"आउ
काज़बिच के की होलइ ?" हम लगन-उताहुल होल (अधीरतापूर्वक) स्टाफ-कप्तान के पुछलिअइ
।
"अइसनकन
लोग के साथ की हो सकऽ हइ !" ऊ उत्तर देलकइ, चाय के गिलास खतम करते, "वास्तव
में ऊ निकस भागलइ !"
"आउ
घायल नयँ होलइ ?" हम पुछलिअइ ।
"ई
तो भगमाने जानऽ हथिन ! जीवनशक्तिसंपन्न, डाकू ! हम तो जी, मसलन, कुछ अइसन सक्रिय लोग
के देखलिए ह - ओकर देह कट-कूटके चलनी (छलनी) होल हइ, आउ तइयो अपन तलवार लगातार भाँज
रहले ह ।"
स्टाफ-कप्तान
कुछ देर चुप रहला के बाद बात जारी रखलकइ, गोड़ जमीन पर पटकते -
"कभियो
हम खुद के माफ नयँ करबइ - किला में अइला पर शैतान हमरा प्रेरित कइलक ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच
के ऊ सब कुछ बता देवे के, जे हम बाड़ा के पीछू में बैठल सुन लेलिए हल; ऊ मुसकइलइ - एतना
धूर्त अदमी ! - आउ खुद कुछ तो योजना (प्लान) बनाब करऽ हलइ ।"
"की
बात हलइ ? किरपा करके बताथिन ।"
"अब
तो कुछ नयँ कइल जा सकऽ हइ ! कहे लगी शुरू कर देलिअइ, त बात जारी रखहीं पड़तइ । करीब
चार दिन बाद अज़मात किला में आवऽ हइ । पहिलहीं नियन, ऊ ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच के पास
रुकलइ, जे ओकरा हमेशे स्वादिष्ट भोजन करावऽ हलइ । हम हुएँ हलिअइ । घोड़ा के बारे बातचीत
मुड़ गेलइ, आउ पिचोरिन काज़बिच के घोड़वा के बारे प्रशंसा करे लगलइ - ई तो अइसन फुरतीला,
सुत्थर, बिलकुल पहाड़ी हिरन नियन हइ - आउ ओकर शब्द के मोताबिक, बस अइसनका घोड़ा तो समुच्चे
दुनियाँ में नयँ हइ ।"
“तातार
छोकरा के आँख चमक उठलइ, लेकिन पिचोरिन जइसे एकरा नयँ नोटिस करऽ हइ; हम कुछ दोसर विषय
पर बात करे लगी चहलिअइ, लेकिन ऊ, देखहो, तुरतम्मे बातचीत के वापिस काज़बिच के घोड़वा
पर ले अइलइ । ई कहानी हरेक तुरी चालू रहलइ, जब कभी अज़मात अइलइ । करीब तीन सप्ताह के
बाद हम नोटिस करे लगलिअइ, कि अज़मात के चेहरा पीला पड़ रहले ह आउ क्षीण हो रहले ह, जइसे
कि प्यार के कारण, जी, उपन्यास में होवऽ हइ । केतना विचित्र बात हइ ! ...”
अइकी
देखथिन, ई सब कहानी के बारे हमरा बाद में पता चललइ - ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच एतना
हद तक ओकरा उत्तेजित कइलकइ, कि ऊ कुच्छो करे लगी तैयार हो गेलइ । एक तुरी ऊ ओकरा कह
बैठलइ - "हम देखऽ हिअउ, अज़मात, कि ई घोड़ा तोरा पागलपन के हद तक पसीन पड़ गेलो ह;
लेकिन ओकरा तूँ अपन सिर के पिछलौका हिस्सा नियन देख नयँ सकऽ हीं ! अच्छऽ, बताव, तूँ
ओकरा की देमहीं, जे तोरा ऊ लाके भेंट में दे देतउ ? ..."
"ऊ
सब कुछ, जे ऊ चाहइ", अज़मात जवाब देलकइ ।
"ओइसन
हालत में हम ओकरा लाके देबउ, खाली एगो शर्त के साथ ... कसम खो, कि तूँ ओकरा पूरा करम्हीं
... "
"हम
कसम खा हिअउ ... लेकिन तूँहूँ कसम खो !"
"ठीक
हउ ! कसम खा हिअउ, तोरा ऊ घोड़ा मिल जइतउ; खाली ओकरा बदले तोरा अपन बहिन बेला के हमरा
सुपुर्द करे पड़तउ - कराग्योज़ तोरा लगी कालिम [1] होतउ । आशा हउ, कि ई सौदा तोरा लगी
फायदेमंद हकउ।"
अज़मात
चुप रहलइ ।
"नयँ
चाही ? खैर, जइसन तोर मर्जी ! हम सोचलियो हल, कि तूँ अदमी हकँऽ, लेकिन तूँ अभियो बुतरू
हकँऽ - अभियो तोरा लगी घुड़सवारी करना जरी जल्दी हउ ..."
अज़मात
भड़क गेलइ ।
"लेकिन
हमर बाऊ जी ?" ऊ बोललइ ।
"की
वास्तव में ऊ कहीं बाहर नयँ जा हथुन ?"
"सही
हइ, जा हथिन ..."
"त
कबूल हकउ ? ..."
"कबूल
हउ", मौत नियन पीयर होल अज़मात फुसफुसइलइ । "कखने ?"
"पहिले
तुरी, जब काज़बिच हियाँ अइतउ; ऊ दस गो भेंड़ हाँकले लावे के हमरा वचन देलके ह - बाकी
- हमरा पर छोड़ दे । देखते रह, अज़मात !"
त
ई तरह ओकन्हीं ई सौदा पक्का करते गेलइ ... सच कहल जाय तो, ई एगो खराब सौदा हलइ ! हम
ई बारे बाद में पिचोरिन के कहवो कइलिअइ, लेकिन खाली ऊ हमरा जवाब देलकइ, कि जंगली चेर्केस
लड़की के ओकरा नियन प्यारा शौहर पाके खुश होवे के चाही, काहेकि, ओकन्हीं के नजर में
ऊ कइसूँ ओकर शौहर हइ, आउ काज़बिच एगो डाकू हइ, जेकरा दंडित करे के चाही हल । खुद्दे
सोचथिन, हम एकर विरुद्ध की जवाब दे सकऽ हलिअइ ? ... लेकिन ऊ बखत ओकन्हीं के षड्यंत्र
के बारे हम कुछ नयँ जानऽ हलिअइ । त अइकी एक तुरी काज़बिच अइलइ आउ पुच्छऽ हइ, की भेंड़
आउ मध चाही; हम ओकरा दोसर दिन लावे के औडर देलिअइ ।
"अज़मात
!" ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच कहलकइ, "बिहान कराग्योज़ हमर हाथ में होतउ; अगर
आझ रात बेला हियाँ नयँ होतउ, त तूँ घोड़वा के नयँ देख पइमँऽ ..."
"ठीक
हउ !" अज़मात कहलकइ आउ सरपट आउल चल गेलइ ।
साँझ
के ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच हथियार से लैस हो गेलइ आउ किला से घोड़ा पर सवार होके बाहर
निकस गेलइ - ओकन्हीं कइसे ई काम के अंजाम देलकइ, हमरा पता नयँ - बस रात के ओकन्हीं
दुन्नु वापिस अइते गेलइ, आउ संतरी देखलकइ, कि अज़मात के जीन के आर-पार एगो औरत पड़ल हलइ,
जेकर हाथ-गोड़ बान्हल हलइ, आउ सिर बुर्का से ढँक्कल ।
"आउ
घोड़वा ?" हम स्टाफ-कप्तान के पुछलिअइ ।
"बतावऽ
हिअइ, बतावऽ हिअइ । दोसरा दिन भोरे काज़बिच अइलइ आउ साथ में दस गो भेंड़ बेचे लगी हाँकले
अइलइ । अपन घोड़वा के छरदेवारी के पास बान्हके, ऊ हमरा भिर अंदर अइलइ; हम ओकरा चाय के
साथ स्वागत कइलिअइ, काहेकि हलाँकि ऊ डाकू हलइ, लेकिन तइयो हमर कुनाक [2] हलइ । हमन्हीं
एन्ने-ओन्ने के गपशप करे लगलिअइ - अचानक, देखऽ हिअइ, काज़बिच चौंक उठलइ, ओकर चेहरा उतर
गेलइ - आउ खिड़किया दने लपकलइ; लेकिन खिड़किया, दुर्भाग्य से, पिछलौका प्रांगण में खुललइ
।
"की
होलउ ?" हम पुछलिअइ ।
"हमर
घोड़वा ! ... घोड़वा ! ..." समुच्चे देह से थरथरइते ऊ कहलकइ ।
आउ
सचमुच हम खुर के टाप सुनलिअइ - "ई तो, लगऽ हइ, कोय कज़ाक अइलइ ..."
"नयँ
! उरूस यामान, यामान ! [3]" ऊ चीख उठलइ आउ पूरा दम लगाके दौड़ पड़लइ, जंगली तेंदुआ
नियन । दू छलाँग में ऊ प्रांगण में पहुँच गेलइ; किला के गेट बिजुन संतरी राइफल से ओकर
रस्ता रोकलकइ; लेकिन ऊ राइफल के उपरे से उछलके निकस गेलइ आउ रोडवा पर से होके तेजी
से दौड़ल गेलइ ... दूर में धूरी चक्कर मारते उपरे उठ रहले हल - अज़मात जोशीला कराग्योज़
के सरपट दौड़इले जा रहले हल; दौड़ते-दौड़ते काज़बिच अपन बंदूक खोल से निकास लेलकइ आउ फायर
कर देलकइ, एक मिनट ऊ स्थिर रहलइ, जब तक कि ओकरा ई पक्का नयँ हो गेलइ, कि ऊ निशाना चूक
गेले हल; फेर ऊ चीख पड़लइ, बंदूक के पत्थल पर पटक देलकइ, एकरा टुकड़ा-टुकड़ा कर देलकइ,
जमीन पर लुढ़क गेलइ आउ बुतरू नियन कन्ने लगलइ ... किला से लोग ओकर चारो दने जामा हो
गेते गेलइ - ऊ केकरो पर ध्यान नयँ देलकइ; लोग ओकरा भिर थोड़े देर रुकलइ, बहस कइलकइ आउ
वापिस चल गेलइ; हम ओकर भेंड़ खातिर ओकरा भिर पैसा रक्खे के औडर देलिअइ - ऊ ओकरा नयँ
छुलकइ, मुँह निच्चे कइले मुरदा नियन पड़ल रहलइ । की अपने विश्वास करथिन, कि ऊ ओइसीं
देर रात तक पड़ल रहलइ, आउ समुच्चे रात ? ... दोसरे सुबह ऊ किला में अइलइ आउ विनती करे
लगलइ, कि लोग ओकरा घोड़वा के अपहरण करे वला के नाम बता देइ । संतरी, जे देखलके हल, कि
कइसे अज़मात घोड़वा के बन्हन खोललके हल आउ ओकरा पर सवार होके सरपट भाग गेले हल, ई बात
के छिपाना जरूरी नयँ समझलकइ । ई नाम पर काज़बिच के आँख चमक उठलइ, आउ ऊ आउल रवाना हो
गेलइ, जाहाँ परी अज़मात के बाप रहऽ हलइ ।
"आउ
बाप के की होलइ ?"
"एहे
तो बात हलइ, कि ओकरा काज़बिच खोज नयँ पइलकइ - ऊ कहीं तो करीब छो दिन लगी बाहर चल गेले
हल, नयँ तो अज़मात के अपन बहिन के अपहरण करे में सफलता मिलते हल ?"
"आउ
जब बाप वापिस अइलइ, त न तो बेटिया हलइ, आउ न बेटवा । अइसन धूर्त हलइ ऊ (अज़मात) - निम्मन
से समझऽ हलइ, कि ओकर सिर के खैरियत नयँ, अगर ऊ पकड़ा गेलइ । त ऊ बखत से ऊ देखाय नयँ
देलकइ - शायद, कोय आब्रेक के गिरोह में शामिल हो गेलइ, आउ तेरेक चाहे कुबान के पार
अपन बेकाबू सिर के अंत कर देलकइ - ओनहीं ओकर रस्ता बच गेले हल ! ..."
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