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Wednesday, May 10, 2017

विश्वप्रसिद्ध रूसी नाटक "इंस्पेक्टर" ; अंक-3 ; दृश्य-4

दृश्य-4
(मिश्का आउ ओसिप)
ओसिप - एकरा काहाँ रक्खल जाय ?
मिश्का - हियाँ, चचा, हियाँ ।
ओसिप - ठहर, जरी सुस्ताय लेवे दे । आह, कइसन दयनीय जिनगी हइ ! जब पेट खाली रहऽ हइ, त सब बोझा भारी लगऽ हइ ।
मिश्का - चचा, जरी बतावऽ - की जेनरल (सेनापति) जल्दीए आवे वला हथिन ?
ओसिप - कउन जेनरल ?
मिश्का - तोर मालिक ।
ओसिप - मालिक ? लेकिन ऊ कइसन जेनरल हथिन ?
मिश्का - त की वास्तव में जेनरल नयँ हथिन ?
ओसिप - जेनरल हथिन, लेकिन खाली दोसरा तरह के ।
मिश्का - की ? ई वास्तविक जेनरल से जादे हथिन कि कम ?
ओसिप - जादे ।
मिश्का - कीऽ ! ओहे से हमन्हीं हीं अइसन हलचल मचल हइ ।
ओसिप - सुन, बेटा - तूँ तो, हमरा लगऽ हउ, समझदार लड़का हकँऽ; कुछ तो खाय के इंतजाम कर ।
मिश्का - लेकिन, चचा, तोरा लगी कुच्छो तैयार नयँ हको । रूखा-सूखा तूँ खइबहो नयँ, आउ अइकी जब तोर मालिक खाय लगी टेबुल भिर बैठथुन, त तोहरो लगी ओहे खाना लगावल जइतो ।
ओसिप - अच्छऽ, लेकिन रूखा-सूखा तोहरा हीं की हको ?
मिश्का - पतकोबी के सूप आउ कचौड़ी ।
ओसिप - ठीक हइ, पतकोबी के सूप, काशा आउ कचौड़िए सही ! कोय बात नयँ, सब कुछ खइबइ । खैर, ट्रंक के ढोके ले जाल जाय ! की, कोय दोसर दरवाजा हइ ?
मिश्का - हकइ ।
(दुन्नु मिलके ट्रंक ढोके बगल वला कमरा में ले जइते जा हइ ।)

  
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