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Thursday, May 11, 2017

विश्वप्रसिद्ध रूसी नाटक "इंस्पेक्टर" ; अंक-3 ; दृश्य-5

दृश्य-5
(पुलिस के सिपाही दरवाजा के दुन्नु पट खोलते जा हइ । ख़्लिस्ताकोव के प्रवेश - ओकरा पीछू मेयर, फेर अनुदान संस्था के न्यासी, स्कूल इंस्पेक्टर, दोबचिन्स्की आउ नाक पर पट्टी लगइले बोबचिन्स्की । मेयर सिपाही लोग के फर्श पर पड़ल कागज के टुकड़ा तरफ इशारा करऽ हका - ओकन्हीं ओकरा झपटके पकड़ते जा हइ आउ आपस में टकरा जइते जा हइ ।)
ख़्लिस्ताकोव - निम्मन संस्था हइ । हमरा पसन पड़ऽ हइ, कि अपने के हियाँ यात्री सब के शहर के सब कुछ देखावल जा हइ । दोसर शहरवन में हमरा कुछ नयँ देखइते गेलइ ।
मेयर - अपने के हम ई कहे के जुर्रत करऽ हिअइ, कि दोसर शहरवन में मेयर आउ अधिकारी लोग अधिकतर अपन-अपन तथाकथित स्वार्थ के चिंता करते जा हका ।  लेकिन हियाँ, कहल जा सकऽ हइ, कि एकरा सिवाय आउ दोसर विचार नयँ रहऽ हइ, कि शिष्ट व्यवहार आउ सतर्कता से प्राधिकारी (authorities) के ध्यान कइसे आकृष्ट कइल जाय ।
ख़्लिस्ताकोव - नाश्ता बहुत निम्मन हलइ; हम बिलकुल रजके खइलिअइ । की अपने हीं रोज दिन अइसन होवऽ हइ ?
मेयर - खास करके प्रिय अतिथि खातिर ।
ख़्लिस्ताकोव - हमरा खाना पसन हइ । वस्तुतः हमन्हीं एहे लगी तो जीयऽ हिअइ, कि खुशी के फूल तोड़ल जाय । ई मछली के की नाम हइ ?
अरतेमी फ़िलिप्पोविच - (दौड़के पास में जइते) जी, लबरदान (salted or dried codfish) ।
ख़्लिस्ताकोव - बहुत स्वादिष्ट । हमन्हीं नाश्ता काहाँ करते गेलिअइ ? कहीं अस्पताल में तो नयँ ?
अरतेमी फ़िलिप्पोविच - जी बिलकुल सही, अनुदान संस्था में ।
ख़्लिस्ताकोव - आद हइ, आद हइ, हुआँ कइएक बेड पड़ल हलइ । आउ रोगी लोग चंगा हो गेते गेलइ ? हुआँ ओकन्हीं, लगऽ हइ, बहुत कम हलइ ।
अरतेमी फ़िलिप्पोविच - लगभग दस लोग रह गेते गेले ह, एकरा से जादे नयँ; बाकी लोग चंगा हो गेते गेलइ। एकर व्यवस्था अइसीं कइल हइ, अइसने नियम हइ । जबसे हम प्रशासन अपन हाथ में लेलिअइ, शायद अपने के विश्वास भी नयँ होतइ, सब कोय मक्खी नियन चंगा हो जइते जा हइ । रोगी जइसीं अस्पताल आवऽ हइ, कि ऊ चंगा हो जा हइ; आउ दवाय से ओतना नयँ, जेतना कि ईमनदारी आउ व्यवस्था से ।
मेयर - आउ हम ई सूचित करे के जुर्रत करऽ हिअइ, कि मेयर के कर्तव्य एगो बड़गो सिरदर्द हइ ! केतना सारा काम पड़ल रहऽ हइ, खाली सफाई, मरम्मत, रख-रखाव के मामले में ... एक शब्द में, सबसे बुद्धिमान अदमी के भी कठिनाई झेले पड़ जइतइ, लेकिन भगमान के किरपा से, सब कुछ ठीक-ठाक चल रहले ह । दोसर मेयर तो, वास्तव में, अपन लाभ के चिंता करतइ; लेकिन, विश्वास करथिन, कि जखने हम सुत्ते लगी भी पड़ जा हिअइ, त सोचते रहऽ हिअइ - "हे भगमान, की कइल जाय, कि प्राधिकारी हमर उत्साह के देखथिन आउ हमरा से प्रसन्न होथिन ? ..." ऊ हमरा पुरस्कृत करथिन चाहे नयँ, वस्तुतः, ई उनकर मर्जी पर निर्भर हइ; कम से कम, हमरा तो मानसिक शांति मिल्लत । जब शहर में सुव्यवस्था रहऽ हइ, सड़क सब साफ-सुथरा होवऽ हइ, कैदी लोग के निम्मन से रक्खल जा हइ, पियक्कड़ लोग कम रहऽ हइ ... त हमरा एकरा से जादे आउ की चाही? वस्तुतः हम कोय सम्मान-उम्मान नयँ चाहऽ ही । ई वास्तव में लुभावना होवऽ हइ, लेकिन सदाचार के सामने ई सब कुछ राख आउ आडंबर हइ ।
अरतेमी फ़िलिप्पोविच - (स्वगत) देखऽ, ई निकम्मा कइसन तस्वीर बनावऽ हइ ! भगमान अइसन प्रतिभा दे !
ख़्लिस्ताकोव - ई सच हइ । हम स्वीकार करऽ हिअइ कि हमरा खुद कभी-कभी दार्शनिक चिंतन के धुन सवार होवऽ हइ - कभी गद्य में, त कभी कविता में निकस जा हइ ।
बोबचिन्स्की - (दोबचिन्स्की से) सच हइ, सब सच हइ, प्योत्र इवानोविच ! टिप्पणी अइसन-अइसन रहऽ हइ - ई बात साफ हइ, कि ऊ एगो विद्वान व्यक्ति हथिन ।
ख़्लिस्ताकोव - किरपा करके बताथिन, अपने हीं कइसनो मनोरंजन, मंडली, नयँ हइ, जाहाँ, मसलन, ताश खेलल जा सकइ ?
मेयर - (स्वगत) ओहो, समझ रहलियो ह, प्यारे, कि तूँ कउची पर निशाना साध रहलहो ह ! (प्रकट) भगमान बचावे ! हियाँ तो अइसन मंडली के कोय नाम-निशान नयँ हइ । हम तो ताश कभी हाथ में नयँ पकड़लिअइ; हमरा एहो नयँ मालुम कि ताश कइसे खेलल जा हइ । हम ओकरा दने उदासीन भाव से कभी नयँ देख सकलिअइ; आउ अगर कभी संयोग से हीरा के अइसन कोय राजा चाहे आउ कुछ के देख लिहइ, त अइसन नफरत होवऽ हइ कि हम थूक दे हिअइ । एक तुरी कइसूँ अइसन होलइ, कि बुतरुअन के मनोरंजन करते, हम ताश के पत्ता के घर बनइलिअइ, लेकिन ओकर बाद रात भर हमरा अभिशप्त सपना अइते रहलइ । भगमान एकरा से बचावे ! एतना कीमती समय अइसन काम में कइसे बरबाद कइल जा सकऽ हइ ?
लुका लुकीच - (स्वगत) आउ हमरा से ई नीच कल्हे सो रूबल ताश के जुआ में जीत लेलक ।
मेयर - बेहतर तो ई होतइ कि हम ई समय के राज्य के भलाई में लगइअइ ।
ख़्लिस्ताकोव - नयँ, अपने के लेकिन गलतफहमी हइ ... ई सब निर्भर करऽ हइ कि कोय ई बात के कउन पहलू से देखऽ हइ । अगर, मसलन, तखने रुक जाल जा हइ, जब दाँव पर रकम डबल करे के जरूरत हइ ... तखने वस्तुतः ...  नयँ, कहल नयँ जा सकऽ हइ, कभी-कभी ताश के खेल बहुत लुभावना होवऽ हइ ।

  
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